“मशहूर हुए वो जो कभी क़ाबिल ना थे और तो और….
कमबख़्त मंजिल भी उन्हें मिली जो दौड़ में कभी शामिल ना थे
*रामनाथ कोविन्द को समर्पित
आडवाणी जी की कलम से ( दो पैग मारने के बाद)
“मशहूर हुए वो जो कभी क़ाबिल ना थे और तो और….
कमबख़्त मंजिल भी उन्हें मिली जो दौड़ में कभी शामिल ना थे
*रामनाथ कोविन्द को समर्पित
आडवाणी जी की कलम से ( दो पैग मारने के बाद)